Thursday 6 February 2014

वास्तु सुधार में लिए जा रहे वास्तु के Products की वास्तविक्ता

श्रीमद् भगवत् गीता में एक श्लोक हैं-
            ऊध्र्वमूलमध: शाखमश्वत्थं प्राहुरत्ययम्।
          छंदासि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।
अर्थात:- कहा जाता है कि एक शाश्वत अश्वत्थ वृक्ष हैं जिसकी जडें तो ऊपर है और शाखाँए जीचे की ओर तथा ऊसकी पत्तियाँ वैदिक स्तोत्र हैं। जो इस वृक्ष को जानता हैं, वह वेदो का ज्ञाता हैं।
                        इसी क्रम में जो व्यक्ति वेदो का ज्ञाता हो उसे भूत, भविष्य और वर्तमान सभी का पता होता है। सतयुग, त्रेता, द्वापर आदि युगो में ऋषियो की वाणि में सत्यता तप द्वारा ही आती थी। कलयुग के विषय में उन्हें पहले से ही पता था कि इस युग के विद्वानो की वाणि में उतनी क्षमता नही होगी। ना ही वे किसी का भूत, भविष्य आदि बता पाऐगें। अत: उन्होनें मानव कल्याण के लिए ज्योतिष वास्तु आदि कई अन्य विधियों, सूत्रो की रचना की, उन्होने सिर्फ मानव कल्याण को लक्ष्य मानकर ही इन विद्याओं को मुर्त रूप दिया। ऋषियों द्वारा वर्णित सूत्रो से प्रत्येक व्यक्ति का भूत वर्तमान व भविष्य में होने वाली घटनाओ का जाना जा सकता हैं। जिससे भविष्य में घटित होने वाली घटनाओ से बचा जा सकता हैं साथ ही वर्तमान को भी सुधारा जा सकता हैं।
            इसे हम यू समझ सकतें है, जैसे प्रत्येक व्यक्ति को देवता भाग्य के 100 अंक देकर भेजते हैं लेकिन ये अंक उसे एक साथ न देकर इधर-उधर बिखेर देते हैं व्यक्ति के पूर्व जन्मों के कर्मो के अनुसार। ज्योतिष केवल उन बिखरे हुए भाग्य के अंको को कैसे प्राप्त किया जाए उसका मार्ग ही बता सकता हैं।
            वर्तमान समय में ज्योतिष व वास्तु का प्रचलन तेजी से बढ रहा हैं साथ ही साथ ऐसे लोगो का जनसमूह भी बढ रहा हैं जो अपने को वास्तुशास्त्री व ज्योतिषी बतातें हैं चाहे उन्हें इस विद्या का ज्ञान न भी हो तो भी वे लोगो को सफलता प्राप्ति हेतु वास्तु के विभिन्न Products का उपयोग वास्तु दोष निवारण में करते हैं। जिसका वास्तु सुधार तो दूर वास्तू  से भी दूर-दूर तक कोई लेना देना नही होता हैं।

यहाँ हम कुछ वास्तु संबंधी Products की चर्चा करेगें कि वे वास्तु सुधार में कारगर है भी या नही -

1.         सीसा - किसी भी व्यक्ति का मकान यदि T Point बना हो तो वास्तु के हिसाब से यह अशुभ माना जाता हैं। यदि मकान का मुख्य द्वार ‘T’ पर हो तो अशुभता की मात्रा और भी बढ जाती हैं। ऐसे मकानो में आधुनिक वास्तुशास्त्री सीसे का प्रयोग सामने से आ रही सडक के समने लगाकर यह मान है कि घर में Negative उर्जा नही आएगी बल्कि उसका रुख वापस सडक पर हो गया हैं।

  किसी भूखण्ड का कोई कोणा कट रहा हो तो भी शीशे का प्रयोग इस प्रकार किया जाता हैं कि भूखण्ड के अन्दर से शीशे में देखने पर अपनी Boundry Wall का प्रतिबिम्ब दिखाई देता हैं। ऐसा करके ये कहते है कि कटान खत्म हो गया या कहेगें कि बढ गया हैं।
            यह धारणा बिलकुल निरर्थक हैं, शीशे का आविष्कार 6000 ईसा वर्ष पूर्व हुआ जबकि हमारे वेद, पुराण, ग्रंथ इससे काफी पुराने है, उस समय जब सीसे नही हुआ करते थे। इसे यु समझे एक बार बचपर में भगवान श्रीराम जी ने माता से चाँद को छुने की जिद् की तो माता कोशल्या ने पानी में चाँद को दिखाया न कि सीसे में। तो सीसा वास्तु दोष निवारण में किस प्रकार सक्ष्म हुआ।
            यह हमें खुद ही समझना होगा। यदि शीशे से ही भूखण्ड का आकार घटाया या बढाया जा सकता तो आज गरीब से गरीब व्यक्ति के पास स्वयं का भुखण्ड होता।

A-1
2.         Copper Wire- आज कल Copper Wire प्रयोग भी काफी प्रचलन में है, दिये गए चित्र संख्या ‘A-1’ में जिसका वायव्य कोना बढा हुआ हैं असे ठीक करने के लिए Copper Wire का प्रयोग करते है। चित्र संख्या ‘A-2’ के अनुसार Copper Wire को भूमि के अन्दर दबाकर कहते है कि अब आपका भूखण्ड का दोष समाप्त हो गया हैं। आपका भुखण्ड के अब दो भागो में विभजित हो गया हैं चित्र ‘A-3’ अनुसार। पहला भाग ‘क’ जो दोष रहित हैं दूसरा
A-2
                                                   
‘ख’ भाग जो दोषपूर्ण है उसे अलग कर दिया हैं। स विधि से आपका  वास्तु दोष सम्पन्न हुआ। जबकि निर्माण कार्य सम्पूर्ण भूखण्ड पर करवाया जाता हैं। दोषपूर्ण हिस्से में शोचालय, गेरेज या गायो हेतु प्रयोग में लिया जाता हैं। ऐसा प्रयोग वास्तु सम्मत नही होता हैं। ऐसे उपायो से वास्तुशास्त्री की तो चॉदी होती हैं परन्तु शुभफल की प्राप्ति भू-स्वामी को कभी भी प्राप्त नही हो पाती हैं।



2.         पाईप का प्रयोग - एक बार मै जयपुर में स्थित सरनाडूंगर औद्योगिक क्षेत्र में एक फैक्ट्री के वास्तु संबंधी जाँच के लिए गया। फैक्ट्री फर्नीचर व्यवसाय से संबंधित थी। जिसमें पहले दो साझेदार हुआ करते थे। एक या दो वर्ष बाद दोनो अलग हो गए। पहला साझेदार नारायण व दूसरा हर्षित था। अलग होकर हर्षित ने पास में ही नयी फैक्ट्री
किराये पर लेकर वही व्यापार आरंभ कर दिया। नारायण उसी फैक्ट्री में बना रहा। अगले 4-5 वर्षो में नारायण को काफी घटा हुआ, जिसके परिणामस्वरुप उसे फैक्ट्री छोडनी पडी जो उसने किराये।
           हर्षित का कार्य जोरो पर था, उसने वह फैक्ट्री जो नारायण के पास थी उसे भी किराये पर ले लिया। हर्षित का दुर्भाग्य भी इसी के साथ शुरू हो गया। जब मै वहॉ पहुँचा तो मैने देखा की भूखण्ड के मध्य भाग से उत्तर दिशा में ही सारा निर्माण कार्य हो रखा हैं तथा दक्षिण दिशा निमार्ण रहित हैं। फैक्ट्री का मुख्य द्वार भी दक्षिण-पूर्व के कोने में स्थित हैं। भूखण्ड के मध्य भाग्य का दोष जहा वशं वृद्धि को बाधित करता हैं। यहाँ फैक्ट्री के विस्तार अर्थात वृद्धि को बाधित कर रहा हैं, वही उत्तर दिशा में स्थित भारी निर्माण गरीबी लाता हैं। दक्षिण-पूर्व का मुख्य द्वार भी अनावश्यक घटनाओ को बढाता हैं।
            मैनें कहा कि इस भूखण्ड में एक बार निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने के बाद नवीन निमार्ण हेतू एक भी ईंट नही रखी गई होगी। इस बात की पुष्टि हर्षित ने हामी भर कर दी। जब हम टहलते-टहलते पहली मंजिल पर पहुँचे तो मैने देखा कि स्टाफ के लिए शोचालय का निर्माण भी उत्तर दिशा पर स्थित दिवारर पर हो रखा हैं। मैरी बात को यह निर्माण ओर भी सिद्ध करता हैं।
            उत्तर दिशा के स्वामी देवता कुबेर व लक्ष्मी जी हैं। कुबेर व लक्ष्मी जी धन-धान्य से संबंधित देवी देवता हैं। अत: उत्तर दिशा मे निर्मित शोचालय घर की सम्पन्नता को धीरे-धीरे कम करने लगता हैं। मैने हर्षित को अन्य वास्तु सम्मत समाधानो के बाद जब कहा कि आप भूखण्ड के दक्षिण दिशा जो निर्माण रहित हैं उसे निर्माण करवाकर भारी करें तो उन्होनें कहाँ कि आपसे पहले एक वास्तुशास्त्री आएं थे। उन्होनें दक्षिण दिशा को भारी करने के लिए भूखण्ड के दक्षिण-पश्चिम कोने में एक लोहे का पाईप झंडा लगाकर लगवाया हैं। मैने देखा सचमुच ऐसा हो रखा था। मैने मन ही मन सोचा कि आजकल के वास्तुशास्त्री किस राह में निकल पडे हैं।
            खैर मैने हर्षित से पूछा कि दक्षिण दिशा भारी होने पर कोई फायदा हुआ क्या? 6 माह बीत चुके हैं कोई फायदा नही हुआ इसलिए तो आपको बुलाया हैं।
                        वास्तु का अर्थ निर्माण से हैं। समराङ्गण सूत्रधार के अनुसार कोई भी निर्मित संरचना वास्तु हैं।  जिसमें व्यक्ति को वर्षा, गर्मी, सर्दी आदि से बचाव कि व्यवस्था की जाती हैं। तो क्या हम एक लोहे के पाईप के नीचे इन सभी ऋतुओं से बच सकते हैं यदि नही तो उपाय कारगर नही हैं। इस दृष्टिकोण से हमें स्वयं सोचना होगा।

3.         पिरामींड -  पिरामिंड का प्रयोग भी वास्तु सुधार संबंधी उपायो में से एक हैं कहीं इसका प्रयोग दरवाजो को बंद करने के रूप मे तो कही आकार में बडे पिरामिंडो का प्रयोग उर्जा नियेत्रण हेतु किया जाता हैं।  यदि मुख्य द्वार गलत दिशा में स्थित हो तो प्लास्टिक के छोटे आकार के पिरामिंडो प्रयोग द्वार को बन्द करने के लिए किया जाता हैं।  चित्र संख्या  ‘A-4’ के अनुसार पिरामिंडो को लगाकर यह कहतें हैं कि पिरामिंडो के प्वाइंट आपस में मैगनेटिक उर्जा के माध्यम से द्वार को बन्द करते हैं(चित्र संख्या ‘A-5’ के अनुसार )। आपका दोषपूर्ण द्वार हमने बंद कर दिया हैं ऐसा कहते हैं।


यहाँ हमें यह समझना होगा कि पिरामिंड लगाने के बाद भी हम आने जाने के लिए वही द्वार उपयोग मे ले रहें हैं तो कि पिरामिंडो द्वारा बंद किया जा चुका है। क्या हम किसी भी दिवार के आर पार आ जा सकते हैं यदि नही तो ये नासमझी क्यों।